बुधवार

हिंदी मेरा है अभिमान

 मैं अंग्रेजी में खो गई कहीं
जो कि मेरा विषय नहीं,
अंग्रेजी कौन हो तुम, कहाँ से आई
कैसे अपनी जड़ें जमाई।
बनकर आई जो मेहमान
आज बनी वो सब की शान,
खोकर तुम्हारी चकाचौंध में
अपनी वाणी का भूले मान।
सरलता सहजता और सौम्यता
मेरी भाषा की पहचान,
मुझको भाती हिंदी की बिंदी
मस्तक चढ़ बढ़ाती शान।
हिंदी बसती मेरी आत्मा में
हिंदी मेरा है अभिमान।
संस्कृत जननी इस भाषा की
महानतम गौरव है इसका
संस्कृत हृदय हिंदुस्तान की
हिंदी उसकी धड़कन है,
यह धमनियाँ है राष्ट्र की तो
हिंदी बहता रक्तकण है।
सम्माननीय है संस्कृत मुझको
पर हिंदी मेरी सखी-सहेली,
हिंदी में ही लिखना -पढ़ना
हिंदी में ही मैं खेली।
हिंदी मेरा जीवन आधार
इसमें है मेरा संसार,
सम्मान करूँ मैं हर भाषा की
पर हिंदी से करती मैं प्यार।
मालती मिश्रा

Related Posts:

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 15 सितम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
    2. दिग्विजय अग्रवाल जी मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत-बहुत आभार।

      हटाएं
    3. दिग्विजय अग्रवाल जी मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत-बहुत आभार।

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. धन्यवाद उत्साहवर्धन के लिए।

      हटाएं
    2. धन्यवाद उत्साहवर्धन के लिए।

      हटाएं
  3. हिंदी हिंदुस्तान के धड़कन

    जवाब देंहटाएं

Thanks For Visit Here.