मंगलवार

दिल्ली सरकार की नई नौटंकी

कहा जाता है कि 'दिल्ली है दिल वालों की' परंतु क्या आज के संदर्भ में इस तथ्य मे कोई सत्यता दिखाई देती है? आज खुले आम सड़कों पर अपराध होते हैं और जनता मूकदर्शक बन कर तमाशा देखती है, सड़क पर एक व्यक्ति का एक्सीडेंट हो जाता है, वो दर्द से तड़प रहा होता और लोग देखते हुए चुपचाप निकल जाते हैं, अगर किसी ने थोड़ी हमदर्दी दिखाई तो ज्यादा से ज्यादा पुलिस को फोन कर दिया बस! और अपनी जिम्मेदारी खत्म मान लिया जबकि हो सकता है कि समय पर मदद मिल जाने से उस व्यक्ति की जान बचाई जा सकती थी..ऐसा यहाँ हर रोज होता है..पूरी भीड़ के सामने दो-तीन बदमाश आते हैं और खुलेआम वारदात को अंजाम देकर चले जाते हैं परंतु जनता इसलिए नहीं बोलती क्योंकि उसे लगता है कि कहीं उन बदमाशों मे से किसी ने उन्हें एकाध चाकू मार दिया तो? सोचने की बात है एक चाकू ...और किसी की जान! यहाँ इसी दिल्ली में यदि पड़ोसी गाली दे दे तो लोग मरने-मारने पर उतर आते हैं परंतु किसी की जान बचाने के लिए कोई जरा सी हिम्मत नहीं दिखा सकता, किसी का समय घायल की जान से अधिक कीमती होता है तो कोई दूसरों के झगड़े में पड़कर अपने-आप को मुसीबत में नहीं डालना चाहता, कहाँ गई इंसानियत? कहाँ हैं वो दिलवाले जिनकी वजह से दिल्ली को दिलवालों की कहा जाता है...अब तो जनता का समाज के प्रति कोई कर्तव्य रह ही नही गया कर्त्तव्य पालन के लिए तो पुलिस और सेना है, 'मीनाक्षी' नाम की लड़की को सरेआम दो लड़के चाकुओं से मार-मार कर बेरहमी से हत्या कर देते हैं, ये घटना बाहर सबके सामने होती है 100-200 लोगों के सामने लड़की रोती-चिल्लाती मदद की गुहार लगाती है, अपने-आपको छुड़ाकर किसी के घर में भी बचने के लिए घुस जाती है परंतु उन अपराधियों की हिम्मत तो देखिए वो घर में से खींच कर भी उसे मारते हैं...आखिर इतनी हिम्मत एक अपराधिक मानसिकता वाले व्यक्ति के मन में कैसे आ जाती है ? हमारे ही कारण क्योंकि उन्हें पता है कि कोई नहीं बोलेगा अगर वहीं किसी ने साहस दिखाया होता तो उस लड़की की जान तो बचती ही साथ ही इस तरह की अपराधिक सोच वाले व्यक्तियों के लिए एक बार सोचने का कारण जरूर बनता...200 लोगों पर 2 व्यक्ति तभी भारी पड़ सकते हैं जब 200 व्यक्ति सिर्फ एक निश्चेष्ट निश्प्राण व्यक्ति बनकर रह जाएँ...आज हमारी आदत बन चुकी है कि कुछ भी हो दोष पुलिस या सरकार पर मढ़ देते हैं और अपनी जिम्मेदारी से हाथ झाड़ लेते हैं, सोचने की बात है कि पुलिस हर व्यक्ति के साथ नहीं चलती, पहल तो हमें ही करना होगा...पुलिस ने अपना काम किया जल्दी से जल्दी मुजरिमों को गिरफ्तार कर लिया..परंतु फिरभी उनके खिलाफ नारे बाजियाँ और प्रदर्शन हो रहे हैं कि ....मृतका के परिवार को न्याय दो...आखिर न्याय कौन करेगा पुलिस या अदालत ? और सोने पे सुहागा ये कि वही जनता जो मूकदर्शक बनकर जुर्म होते हुए देखती है वही न्याय मांगने के लिए इस तरह के राजनीतिक ढकोसलों में शामिल हो जाती है...लोग राजनीति करने से पहले ये भी नही सोचते कि उनके दिखावे से वही आम जनता परेशान होती है जिसके फिक्रमंद वो स्वयं को दिखाते हैं...राजनीतिक पार्टियाँ इस प्रकार की दुखद घटनाओं पर भी राजनीति करने से नहीं चूकतीं, मेरा तो बस एक ही सवाल है कि उस लड़की की मृत्यु के लिए पुलिस को जिम्मेदार किस आधार पर ठहराया जा सकता है और यदि ऐसा है भी तो क्या तमाशबीन बनी जनता इसके लिए जिम्मेदार नहीं ? बल्कि ज्यादा है, फिर कटघरे में सिर्फ पुलिस क्यों? मूकदर्शक जनता को भी होना चाहिए... जनता ने वो नहीं किया जो करना चाहिए था, लड़की की मौत के जिम्मेदार वो लोग भी हैं जिन्होंने देखते हुए भी उसे बचाने का प्रयास नही किया...आज पुलिस को कटघरे में खड़ा करना तो महज राजनीति है क्योंकि वहाँ कोई पुलिस वाला तमाशबीन नहीं था..हमारी सरकार को संवेदन शील होने की आवश्यकता है, यदि सरकार ही राजनीति चमकाने हेतु संवेदनहीनता दिखाएगी तो आम जनता से कोई उम्मीद नहीं की जा सकती, क्योंकि ये तो सत्य है जैसा राजा वैसी प्रजा.....
पुलिस को सहयोग करने की बजाय बात-बात पर प्रदर्शन, नारेबाजी, धरने देकर पुलिस के काम मे रुकावट डालने का प्रयास है न कि पीड़ित परिवार के प्रति संवेदना....आज हमारी दिल्ली सरकार प्रदर्शन करके सिर्फ राजनीति कर रही है क्योंकि हमारे माननीय मुख्यमंत्री जी का दिमाग सिर्फ इन्ही चीजों मे काम करता है वो न्याय या विकास के विषय में बातें तो कर सकते हैं पर काम सिर्फ प्रदर्शन के रूप में ही कर सकते हैं, इसे जनता को ही समझना होगा और संवेदनशील बनना होगा.....

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