रविवार

हिंदी का दर्द


हिंदी हमारी मातृभाषा है किंतु अपने ही देश मे हमारी राष्टृभाषा की जो बेकदरी हो रही है उसे देख संतानों के होते हुए वृद्धाश्रम में जीने को मजबूर माँ की दशा आँखों के समक्ष प्रत्यक्ष हो जाती है | माँ अपनी संतान को अपना दूध पिलाकर ही नही अपने खून से सींचती है किंतु संतान अपने कर्तव्यों से विमुख हो उसे बेसहारा दर-दर भटकने को छोड़ देते हैं ठीक उसी प्रकार हमारी पहचान जो हमने बनाई है वो अपनी मातृभाषा से ही बनाई है किंतु आज हम हिंदी बोलने में ही शर्मिंदगी महसूस करते हैं और अंग्रेजी बोलने में अपनी शान समझते हैं, ये तो वही बात हो गई कि अपनी माँ को माँ कहने में लज्जा आती है और परायों की माँ को बिठाकर पूजने में गर्व महसूस करते हैं कभी सोचा है कि ऐसा क्यों? क्योंकि उनकी संताने उन्हें आदर देती हैं इसीलिए| यदि हमारी तरह वो लोग भी अंग्रेजी को उपेक्षित समझते और अपनी मातृभाषा का अपमान करते तो निश्चित रूप से हम या अन्य भी उसे सिर आँखों पर न बैठाते |
ये तो हमारी परंपरा रही है कि अतिथि का सत्कार करें परंतु अपनों का अपमान करने की परंपरा नहीं रही है, हमें हर भाषा का सम्मान करना चाहिए परंतु अपनी भाषा के सम्मान की कीमत पर नहीं...आज विद्यालयों में हिंदी अनिवार्य होने के कारण पढ़ाई तो जाती है परंतु महज खानापूर्ति के लिए, एक अध्यापिका के तौर पर मैंने देखा है कि विद्यालयों में हर विषय अंग्रेजी में पढ़ाये जाते है सिर्फ हिंदी एक अकेला विषय होने के कारण उसपर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता यहाँ तक कि छात्रों के मस्तिष्क में यही सोच बिठा दिया गया है कि उनके भविष्य के लिए हिंदी का कोई महत्व नहीं, यही कारण है कि आज दसवीं के छात्र को भी ठीक से हिंदी लिखनी और बोलनी नहीं आती....इन अंग्रेजी विद्यालयों में हिंदी के अध्यापकों की दशा भी हिंदी की ही तरह दीन-हीन अर्थात् उपेक्षित है और उन्हें हिंदी भाषा को भी अंग्रेजी में पढ़ाने का निर्देश दिया जाता है | इससे ये समझा जा सकता है कि जब देश में अपनी मातृभाषा को लेकर ऐसी उदासीनता ऐसी उपेक्षा हो तो हम कैसे एक विकसित देश के वासी कहलाने का स्वप्न पूरा कर सकते हैं.....

मालती मिश्रा

3 टिप्‍पणियां:

  1. इंग्लिश के पीछे भाग उठे, हिंदी जिनकी निज माता है।
    जिसके बेटों की बुद्धि फिरी ,उस माँ को चैन न आता है।

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  2. इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद मनीष जी

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  3. इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद मनीष जी

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