रविवार

ये अंधा कानून है...

हमारे देश का कानून
है कितना निष्पक्ष महान
एक तराजू में ही तोले
चाहे हो जेब कतरा कोई साधारण
या हो देशद्रोही कन्हैया और अनिर्बान

हमारे देश में न्यायालय को न्याय का मंदिर माना जाता है, न्यायालय में सुनाए गए फैसले को सर्वोपरि माना जाता है, कानून को सबके लिए समान बताया गया है...और सच भी है ऐसी समानता और कहीं देखने को नहीं मिलेगी कि किसी नारी का बलात्कार किया जाता है उसकी अस्मत लूट ली जाती तो जुर्म साबित होने पर (जो कि साबित होने में सालों लग जाते हैं) हमारा कानून आज से कुछ साल पहले तक 7 साल की सजा सुनाता है वहीं 700₹ लूटने के अपराध में (10 नवंबर 2009) जुर्म साबित होने पर मुजरिम को 7 साल की कैद (जुलाई 2010) की सजा सुनाई जाती है।  ( हिंदुस्तान पेज 9, 9 सितंबर 2013, हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति एस पी गर्ग ने निचली अदालत की सजा रखी बरकरार ) है न सबके लिए समान कानून...... 
समानता का ऐसा उदाहरण और कहाँ देखने को मिलेगा? जिस देश में स्त्री को देवी माना जाता है उसी देश में सरेआम उसका सामूहिक बलात्कार किया जाता है और पीड़िता द्वारा पहचाने जाने के बाद, चश्मदीद गवाह की गवाही के बाद भी आरोपी को अपना पक्ष रखकर झूठे सबूत और गवाह पैदा करके बचने का अवसर दिया जाता है, ऐसे में यदि पीड़िता बच जाती है तो हर सुनवाई पर अदालत में मानसिक बलात्कार की प्रताड़ना झेलती है और यदि मर चुकी होती है तो उसके परिजन इस प्रताड़ना के शिकार होते हैं, न्याय पाने के लिए दर-दर की ठोकरें खाते हैं पर न्याय नही मिलता, जहाँ एक ओर अदालत में सजा सुनाई जाती है तो दूसरी ओर अपराधी को बचने का समय भी दिया जाता है, पर क्या करें हमारे देश का कानून है ही इतना महान और रहम दिल यहाँ तो अस्मत पर हमला स्त्री के हो या देश के.... कानून तो आँखों पर पट्टी बाँधे काले दिल वाले काले कोटधारियों के इशारों का गुलाम मात्र नजर आने लगा है। मुझे पता है कि कानून का सम्मान करना चाहिए और ऐसा नही कहना चाहिए, परंतु मैं कहना चाहूँगी कि मैं कानून का सम्मान करती हूँ इसीलिए बहुत दुख होता है यह देखकर जब कोई बड़ा अपराधी कानून के पैंतरों का प्रयोग करके कानून की ही आँखों में धूल झोंककर आज़ाद हो जाता है और फिर कानून का ही मखौल उड़ाता है। आज हमारे देश में यही तो हो रहा है इसीलिए अपराधियों के हौसले बुलंद हैं, उन्हें सशर्त जमानत पर छोड़ दिया जाता है और वो बाहर आकर झूठ को सच और सच को झूठ बनाने में तल्लीन हो जाते हैं। सबूत देखकर भी जिन अपराधियों को जबरन गिरफ्तार न करके उन्हें आत्मसमर्पण का मौका दिया जाता है वो क्यों डरेंगे कानून से? 
बहुत अजीब लगता है ये देखकर कि देश विरोधी गतिविधियाँ होती देखकर भी अपराधियों के साथ कितना नर्म रवैया होता है कानून का और जब जनता के विरोध के चलते गिरफ्तारी होती भी है तो सबूतों की सत्यता जब तक प्रमाणित न हो जाए तब तक के लिए आजाद कर दिया जाता है, उन्हें हिरासत में रखते हुए भी तो सत्यता की जाँच की जा सकती है परंतु नहीं सब रसूख की बात है।
ऐसा नहीं कि मैं कानून का सम्मान नहीं करती परंतु जब निष्पक्षता का हृास होते हुए देखती हूँ तो बहुत दुख होता है। कहते हैं कानून की नजर में सब समान हैं परंतु ये कैसी समानता है कि एक गरीब का अपराध कानून को नजर आता है और एक अमीर का नही?  सत़्य तो ये है कि अपराध की संगीनता वकीलों या यूँ कहूँ कि नोटों की गड्डियों द्वारा तय होता है तो ये गलत न होगा। यदि ऐसा ही चलता रहा तो अभी तो राजनीतिज्ञों और धनवानों के द्वारा कानून का मखौल बनाया जा रहा है धीरे-धीरे आम जनता भी इसी दौड़ में शामिल हो जाएगी।


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