शनिवार

भारत की जय न बोलेगा

खा कर भारत माँ का अन्न, पीकर के इसका ही नीर
प्राण वायु के लिए चाहिए, इसी देश का सुरभित समीर।
विधना ने तुझको भेजा जहाँ, वो भी तो है हिंद की जमीं 
मातृभूमि का अपमान करके, तेरी सांसें क्यों न थमीं।
जिस माँ ने तुझको जन्म दिया, तूने उसको दुत्कार दिया
गर मातृभूमि की जयजयकार, करने से तूने इंकार किया।
गर कहता है कि तू, भारत की जय न बोलेगा 
फिर सोच ले तू कि देशप्रेमियों का, खून क्यों न खौलेगा।
खाता है जिस थाली में, छेद उसी में करता है 
जिस पाक से न कोई नाता रिश्ता, तू उसी पर मरता है।
जिस भारत में जन्म लिया,जिसकी माटी ने किया दुलार
जिसने अपनी ममता का, आँचल तुझ पर दिया पसार।
उसी माँ को माता कहने में, तेरी जिह्वा घिसती है 
इंसान की शक्ल में भेड़िया है तू, इंसानियत की क्या हस्ती है।
खाकर नमक हिंद का, नमक हरामी करता है 
बेच दिया धर्म-ईमान, आतंक की गुलामी करता है।
देश के ऐसे गद्दारों का, अधिकार नहीं है आजादी 
सबक सिखाते रहना है, जब तक न बोले "जय भारत माता की।"
जय हिंद.....
मालती मिश्रा

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