बुधवार

अँधेरा मेरे मन का

दीप जलाया गलियों में
हर घर के हर कोनों में,
सकल जग जगमग करने लगा
पर मिटा न अँधेरा मेरे मन का।

स्वच्छता अभियान की राह चला
हर गली नगर को साफ किया,
घर-आँगन सब स्वच्छ हुआ
पर धूल हटा न मेरे जीवन का।

क्यों असर नहीं सच्चाई का
जीवन की हर अच्छाई का,
उत्तर ढूँढ़ने मैं निकला तो
प्रश्न यही था जन-जन का।

राग-द्वेष की काली चादर से
ढँका हुआ था स्वत्व मेरा,
लालच के मोटे परदों ने
द्वार ढका मेरे मन का।
मालती मिश्रा

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