रविवार

यादों में तुम


आते हो हर पल यादों में तुम,
मेरे तन्हा मन को बहलाने को।
बैठ मुंडेरी बाट जोहती,
चंदा संग तेरे आने को।
कुछ कहने को कुछ सुनने को,
कुछ रूठने और मनाने को।
पल-पल में जो सँजो रखा है,
वो हाले दिल सुनाने को।
व्याकुल मन मेरा सोच घबराए,
नए-नए से जुगत लगाने को।
शशि दर्शन के बहाने से तुम्हरी,
छवि आँखों में बसाने को।
छेड़ें सखियाँ मुझको जब-तब,
लेकर शेखर नाम बहाने को।
लाज की मारी मैं सिमटी जाऊँ,
छिप-छिप राह तकूँ तेरे आने को।
ज्यों-ज्यों दिनकर बढ़ता जाए,
अंबर के अंक में समाने को।
व्याकुलता मेरी बढ़ती जाए,
पर कह न सकूँ मैं जमाने को।
आते हो हर पल यादों में तुम,
मेरे तन्हा मन को बहलाने को।।
मालती मिश्रा

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